Cellular concept note


नमस्कार दोस्तों! आज हम आपको 1G, 2G, 3G, 4G और 5G के बारे में बताने जा रहे हैं। 

ये सभी मोबाइल नेटवर्किंग की पीढ़ियां हैं, जो कि हमारे समय के साथ-साथ विकसित हुई हैं। हम आपको इन पीढ़ियों की प्रमुख विशेषताएं, उनके फायदे और नुकसान, और उनके भविष्य की संभावनाओं के बारे में बताएंगे।

1G का मतलब पहली पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है। 1G का प्रारंभ 1970 के दशक में हुआ, जब पहली बार मोबाइल फ़ोन का उपयोग किया गया। 1G का संचार analog सिग्नल पर होता था, जिसका मतलब है कि सिर्फ voice call करना संभव था। 1G की speed 2.4 kbps (kilobits per second) से 14.4 kbps के बीच होती थी। 1G की समस्या यह थी कि analog सिग्नल easily interfere होते हैं, noise create करते हैं, और secure नहीं होते हैं।

2G का मतलब दूसरी पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है। 2G का प्रारंभ 1990 के दशक में हुआ, जब digital सिग्नल का प्रयोग हुआ। digital सिग्नल analog सिग्नल से better quality, security, and efficiency provide करते हैं। 2G में voice call के साथ-साथ SMS (short message service) and MMS (multimedia message service) services available हुए। 2G की speed 64 kbps (kilobits per second) से 144 kbps (kilobits per second) के बीच होती थी।

3G का मतलब third generation of mobile network technology है। 3G का प्रारंभ 2000 के दशक में हुआ, जिसने internet access, video calling, and mobile TV services possible किए। 3G में data transmission rate increase हुआ, speed up to 2 Mbps (megabits per second) for stationary users and up to 384 kbps for moving users. 3G में bandwidth and spectrum efficiency improve हुए, network capacity increase हुआ, and latency reduce हुआ.

4G का मतलब है चौथी पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्किंग तकनीक। 4G 2000 के दशक के अंत में पेश किया गया था। 4G 3G से 50 गुना तेज है। 4G हाई-डेफिनिशन मोबाइल टीवी, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, क्रिस्टल-क्लियर ऑडियो चैट्स और कई अन्य सुविधाओं की अनुमति देता है। 4G स्मार्टफोन, कंप्यूटर और टैबलेट पर बहुत फास्टऑनलाइन ब्राउज़िंग की अनुमति देता है।

5G का मतलब है पांचवीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्किंग तकनीक। 5G 2020 के दशक में पेश किया जा रहा है। 5G 4G से 10 से 100 गुना तेज हो सकता है। 5G 20 Gbps तक की स्पीड प्रदान कर सकता है। 5G में समय-समापन (latency) को 1 मिलीसेकंड से कम किया जा सकता है। 5G में प्रति unit area में bandwidth को 1000x से अधिक सुधारा जा सकता है। 5G में प्रति unit area में connected devices को 100x से अधिक सुधारा जा सकता है।

Introduction to 1G, 2G, 3G, 4G and 5G
वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम का एक महत्वपूर्ण घटक है सेल एरिया (cell area)। सेल एरिया वह क्षेत्र है जहां एक वायरलेस संचार (wireless communication) नेटवर्क के अंतर्गत एक मोबाइल डिवाइस को सिग्नल प्राप्त होता है। सेल एरिया को आमतौर पर हेक्सागनल (hexagonal) आकार में प्रदर्शित किया जाता है, जो कि समान आकार के सेलों को जोड़कर बनता है। प्रत्येक सेल में, एक सेलुलर (cellular) टावर होता है, जो कि मोबाइल डिवाइसों के साथ संचार (communication) के लिए आवश्यक संकेत (signals) को प्रसारित (transmit) और प्राप्त (receive) करता है।


सेलुलर (cellular) नेटवर्क में, सेलों को मुख्यत: तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है:

  1. मैक्रोसेल (macrocell)
  2. माइक्रोसेल (microcell) और
  3. पीकोसेल (picocell)

1. मैक्रोसेल (macrocell) सबसे बड़े सेल होते हैं, जिनका व्यास 1-30 किमी होता है। मैक्रोसेल (macrocell) का प्रयोग मुख्यत: शहरी (urban) क्षेत्रों में होता है, जहां मोबाइल प्रयोगकर्ताओं की संख्या अधिक होती है। माइक्रोसेल (microcell) मध्यम-आकार के सेल होते हैं, जिनका व्यास 100-1000 मीटर होता है।

2. माइक्रोसेल (microcell) का प्रयोग मुख्यत: परिवहन (transportation) के माध्यम, जैसे सड़क, पुल, रेलमार्ग, आदि, पर होता है, जहां मोबाइल प्रयोगकर्ताओं की संख्या कम-से-कम होती है, परन्तु संकेत (signal) की मांग समतुल्य होती है।

3. पीकोसेल (picocell) ये एक छोटा सेलुलर बेस स्टेशन हैं जो कम इलाके में कवरेज प्रदान करता हैं, जैसे कि इमारतों में (दफ्तर, शॉपिंग मॉल, रेलवे स्टेशन, स्टॉक एक्सचेंज, आदि), या हाल ही में हवाई जहाजों में। सेलुलर नेटवर्क में, पिकोसेल का प्रयोग आमतौर पर उन अंदरूनी क्षेत्रों में कवरेज को बढ़ाने के लिए किया जाता हैं, जहां बाहरी सिग्नल अच्छी तरह से पहुंचते नहीं हैं, या उन क्षेत्रों में नेटवर्क क्षमता को बढ़ाने के लिए, जहां फ़ोन का प्रयोग बहुत ज़्यादा होता हैं, जैसे कि रेलवे स्टेशन या स्टेडियम। पिकोसेल उन क्षेत्रों में कवरेज और क्षमता प्रदान करते हैं, जहां पारंपरिक मैक्रोसेल का प्रयोग करना मुश्किल या महंगा होता हैं ।

सेल साइट क्या है?

सेल साइट, सेल फोन टावर या सेलुलर बेस स्टेशन एक सेलुलर-योग्य मोबाइल डिवाइस साइट है जहां एंटीना और इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरणों को एक सेल या समीपस्थ सेलों को बनाने के लिए (आमतौर पर एक रेडियो मस्त, टावर या अन्य उठे हुए संरचना पर) रखा जाता है, जो कि सेलुलर नेटवर्क का हिस्सा है।

सेल साइट की संरचना

Cell site structure of cellular concept



सेल साइट की संरचना मुख्यत: पांच मुख्य हिस्सों में बांटी जा सकती है:

  • एंटीना: ये सेलुलर सिग्नल को प्रसारित करते हैं, प्राप्त करते हैं और प्रक्रिया करते हैं।
  • त्रांसीवर: ये सिग्नल को मॉडुलेट, डीमॉडुलेट, एम्पलीफाई, मिक्स, फिल्टर, और प्रक्रिया करते हैं।
  • सिग्नल प्रोसेसर: ये सिग्नल को कोड, डीकोड, मुल्टीप्लेक्स, मॉनिटर, माप, पहचान, और प्रक्रिया करते हैं।
  • कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्s: ये सेल साइट के प्रदर्शन, प्रतिक्रिया, सुरक्षा, प्रमाणीकरण, प्रतिबंध, मेंटेनेंस, और प्रक्रिया को प्रबंधित करते हैं।
  • GPS प्राप्तक: GPS (Global Positioning System) प्राप्तक समय (timing) के लिए होता है, जो सेलुलर सिग्नल के मिलन (synchronization) के लिए ज़रूरी है।

सेल साइट के प्रकार
सेल साइट के प्रकार मुख्यत: 3 होते हैं:

  1. मैक्रो सेल साइट एक ऊंचे स्तंभ, मस्जिद, या छत पर स्थापित होते हैं और किलोमीटरों की दूरी को कवर करते हैं।
  2. माइक्रो सेल साइट एक कम ऊंचाई पर स्थापित होते हैं और कुछ सौ मीटर की दूरी को कवर करते हैं।
  3. पिको सेल साइट एक बहुत ही कम ऊंचाई पर स्थापित होते हैं और कुछ दस मीटर की दूरी को कवर करते हैं।

नमस्कार दोस्तों, आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम बात करेंगे सेलुलर क्षमता के बारे में। 
सेलुलर क्षमता का मतलब है कि एक सेलुलर नेटवर्क में एक समय में कितने यूजर संचार कर सकते हैं। सेलुलर क्षमता नेटवर्क की डिजाइन, सेल का आकार, रेडियो चैनलों की संख्या, सिग्नल की गुणवत्ता, मोडुलेशन प्रक्रिया, इंटरफ़ेरेंस, हैंडओवर प्रक्रिया, आदि पर निर्भर होती है।

Capacity of cell of wireless communication system

सेलुलर क्षमता को बढ़ाने के लिए कुछ प्रमुख तकनीकें हैं, जैसे:-

  • सेल को छोटा करना: सेल को छोटा करने से सेलुलर नेटवर्क में अधिक संख्या में सेल बनाये जा सकते हैं, जिससे प्रति सेल में कम से कम यूजर होंगे, और प्रति सेल में अधिक चैनलों का पुन: उपयोग (reuse) हो सकता है।
  • सेक्टरीकरण: सेक्टरीकरण में प्रत्येक सेल को 3, 4, 6, 9, 12, 18, 24, 36, 48, 60, 72, 84, 96, 108, 120, 144, 168, 192, 216 or 240 degrees (depending on the number of sectors) में divide (divide) किया जाता है। प्रत्येक sector में different frequency bands (frequency bands) assign (assign) किए जाते हैं।
  • माइक्रोसेल: माइक्रोसेल small cells (small cells) होते हैं, जो high traffic areas (high traffic areas) में use (use) किए जाते हैं। माइक्रोसेल low power transmitters (low power transmitters) use (use) करते हैं, जिससे interference (interference) reduce (reduce) होता है।
नमस्कार दोस्तों! आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम फ्रीक्वेंसी रियूज कॉन्सेप्ट (Frequency reuse concept) के बारे में जानेंगे। 

फ्रीक्वेंसी रियूज कॉन्सेप्ट का उपयोग सेलुलर नेटवर्क में किया जाता है, जिससे कि सीमित संख्या में उपलब्ध फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम का अधिकतम प्रभावी तरीके से प्रयोग किया जा सके।

Frequency Reuse Concept

फ्रीक्वेंसी रियूज कॉन्सेप्ट का मतलब है कि हम एक ही फ्रीक्वेंसी बैंड को कई सेलों में पुन: प्रयोग कर सकते हैं, जो कि समानांतर होते हुए एक-दूसरे से परस्पर दूर हों। इससे हमें अतिरिक्त फ्रीक्वेंसी साइनल का प्रावधान करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है, और हमारा सिस्टम कपैसिटी (system capacity) भी बढ़ता है।

फ्रीक्वेंसी रियूज कॉन्सेप्ट को समझने के लिए, हमें सेलुलर सिस्टम (cellular system) का मौलिक परिचय होना ज़रूरी है।

सेलुलर नेटवर्क सिस्टम एक प्रकार का वायरलेस नेटवर्क है जो मोबाइल डिवाइस को आपस में जोड़ने के लिए काम आता है। सेलुलर नेटवर्क सिस्टम में कई सारे सेल होते हैं जो किसी एक क्षेत्र को कवर करते हैं। प्रत्येक सेल में एक बेस स्टेशन होता है जो मोबाइल डिवाइस को रेडियो सिग्नल प्रदान करता है।

नमस्कार दोस्तों, आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम **Interference of Co-channel Interference and Co-channel Adjacent channel** के बारे में जानेंगे।

Interference का मतलब है कि एक ही फ्रीक्वेंसी पर काम करने वाले दो या दो से अधिक सिग्नल का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ना। Interference की वजह से हमारी मोबाइल कम्युनिकेशन में कुछ समस्याएं आती हैं, जैसे कि क्रॉसटॉक, मिस्ड कॉल, ब्लॉक्ड कॉल, आदि। 

Co-channel Interference and Co-channel Adjacent channel

Interference के दो प्रकार होते हैं – 

  1. Co-channel Interference और 
  2. Adjacent channel Interference 
1. Co-channel Interference: Co-channel Interference में, एक ही कवरेज एरिया में समान फ्रीक्वेंसी पर काम करने वाले सेल्स का परस्पर प्रभाव पड़ता है। Co-channel Interference से बचने के लिए, सेल्स को Co-channel Reuse Ratio के हिसाब से Cluster में रखा जाता है, जिससे Co-channel Interference कम होता है और Transmission Quality बढ़ती है । Co-channel Interference की मुख्य कारण हैं –

मौसम की परिवर्तन

  • Frequency Planning की कमी
  • Same Frequency पर Different Base Station का Operation

Co-channel Interference को कम करने के लिए, हमें Proper Planning and Implementation, Frequency Reuse Technique, Cell Splitting and Cell Sectoring, Handoff Technique, etc. का प्रयोग करना पड़ता है ।

2. Adjacent channel Interference: Adjacent channel Interference में, Desired Signal से Adjacent Frequency पर Operating Signal का प्रभाव पड़ता है। Adjacent channel Interference में Receiver Side Filters Imperfect होते हैं, जिसकी वजह से Neighboring Signal Actual Pass Band में Mix होता है। Adjacent channel Signal Strength Strong होने पर Base Station Actual Mobile Signal Strong Mobile Signal से Differentiate करने में Unable होता है । 

Adjacent channel Interference की मुख्य कारण हैं –

  • Similar Frequencies पर Multiple Channels Close to Each Other Communicating
  • Irrelevant Power Emission from an Adjacent Channel
  • Two Adjacent Cells Space Constant Remain

Adjacent channel Interference को Reduce करने के Factors हैं –

  • Proper Filtering
  • Careful Channel Assignments
  • Managing the Space Between Two Adjacent Cells
आपके लिए पाठ उत्पन्न करने में खुशी होगी। निम्नलिखित पाठ में, मैंने आपके द्वारा दिए गए कीवर्ड्स का उपयोग करते हुए, पावर कंट्रोल के बारे में एक उत्साही और लंबा ब्लॉग पोस्ट लिखा है।

Power control for reducing interference

पावर कंट्रोल का मतलब है कि संचार सिस्टम में प्रसारक पावर आउटपुट का समझदारी से चयन करना, ताकि सिस्टम में अच्छा प्रदर्शन हो सके। पावर कंट्रोल की मदद से, हम सेलुलर संचार में होने वाली हस्तक्षेप (interference) को कम कर सकते हैं, जो कि सिस्टम की क्षमता (capacity) और संचार की गुणवत्ता (quality) पर प्रभाव डालती है।

हस्तक्षेप (interference) का मतलब है कि सेलुलर संचार में, एक ही समय में, कई प्रसारक (transmitters) एक ही आवृत्ति (frequency) पर संकेत (signals) भेजते हैं, जिससे प्राप्तकर्ता (receiver) को सही संकेत (signal) को पहचानने में मुश्किल होती है। हस्तक्षेप (interference) से बचने का एक तरीका है, प्रसारक (transmitter) का पावर (power) कम करना, जिससे संकेत (signal) की पहुंच (range) कम होती है, और समीपस्थ प्रसारक (transmitters) से होने वाला हस्तक्षेप (interference) कम होता है।

आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम सेलुलर नेटवर्क प्लानिंग के मूल तत्वों के बारे में जानेंगे। 

सेलुलर नेटवर्क प्लानिंग का मतलब है कि हम एक ऐसा नेटवर्क डिजाइन करते हैं जो हमारे उपयोगकर्ताओं को सर्वोत्तम संचार सुविधा प्रदान करता हो। 

सेलुलर नेटवर्क प्लानिंग के चार प्रमुख पहलू हैं:

  1. कवरेज प्लानिंग
  2. कैपेसिटी प्लानिंग
  3. सेल स्प्लिटिंग प्लानिंग और 
  4. सेक्टरिंग प्लानिंग
  • कवरेज प्लानिंग : कवरेज प्लानिंग का मतलब है कि आप अपने बीमा पॉलिसी की समीक्षा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि आपको आवश्यक सुरक्षा मिलती है। कवरेज प्लानिंग से आप अपने परिवार को आर्थिक रूप से सुरक्षित रख सकते हैं, अपने प्रीमियम को कम कर सकते हैं, और अपनी जरूरतों के अनुसार प्लान को बदल सकते हैं।
कवरेज प्लानिंग

  • कैपेसिटी प्लानिंग: क्षमता नियोजन का अर्थ है अपनी परियोजना की संभावित आवश्यकताओं का निर्धारण करना। क्षमता नियोजन का लक्ष्य है कि जब आपको उनकी जरूरत हो, तो सही संसाधन उपलब्ध हों। संसाधन का मतलब हो सकता है सही कौशल वाले व्यक्ति, किसी और परियोजना को जोड़ने के लिए समय, या आवश्यक बजट|
कैपेसिटी प्लानिंग

    क्षमता नियोजन के तीन प्रकार हैं: अग्रणी क्षमता नियोजन, पीछे की स्ट्रेटेजी नियोजन, और मैच स्ट्रेटेजी नियोजन। प्रत्येक प्रकार का उपयोग उत्पादन क्षमता को अनुकूलित करने के लिए विभिन्न परिस्थितियों में किया जा सकता है ।
  •   3. सेल स्प्लिटिंग प्लानिंग और सेक्टरिंग प्लानिंग: सेल स्प्लिटिंग और सेल सेक्टरिंग सेलुलर नेटवर्क में चैनल क्षमता बढ़ाने के दो तरीके हैं। सेल स्प्लिटिंग में, एक सेल को छोटे-छोटे सेल में विभाजित किया जाता है, जिनमें प्रत्येक का अपना बेस स्टेशन होता है। इससे, नए माइक्रोसेल बनते हैं, जिनका त्रिज्या कम होता है। प्रत्येक नया सेल स्वतंत्र होता है और उसकी एंटीना की ऊंचाई और प्रसारक की शक्ति कम होती है। नए छोटे सेलों के निर्माण से प्रणाली की कुल क्षमता बढ़ती है।
सेल स्प्लिटिंग प्लानिंग

सेल सेक्टरिंग में, सेलों को कुछ पंखुड़ियों के आकार में सेक्टर में विभाजित किया जाता है, प्रत्येक में अपना सेट ऑफ चैनल होता है। पंखुड़ियों का मतलब है कि सेल 120° या 60° के कोण पर विभाजित होते हैं। इन सेक्टर्ड सेलों को माइक्रोसेल कहते हैं। सेल स्प्लिटिंग की तरह, यह भी चैनल क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है और चैनल हस्तक्षेप को कम करता है। 3 या 6 सेक्टर प्रत्येक सेल से प्राप्त होते हैं। परन्तु, सेल स्प्लिटिंग के विपरीत, यहाँ सेल की त्रिज्या परिवर्तन नहीं होती है, हालाँकि, सह-संक्रमण पुन:प्रयोग (co- channel reuse) का अनुपात (ratio) कम होता है।

सेक्टरिंग प्लानिंग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *