नमस्कार दोस्तों, आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम बात करेंगे सेलुलर क्षमता के बारे में।
सेलुलर क्षमता का मतलब है कि एक सेलुलर नेटवर्क में एक समय में कितने यूजर संचार कर सकते हैं। सेलुलर क्षमता नेटवर्क की डिजाइन, सेल का आकार, रेडियो चैनलों की संख्या, सिग्नल की गुणवत्ता, मोडुलेशन प्रक्रिया, इंटरफ़ेरेंस, हैंडओवर प्रक्रिया, आदि पर निर्भर होती है।

- सेल को छोटा करना: सेल को छोटा करने से सेलुलर नेटवर्क में अधिक संख्या में सेल बनाये जा सकते हैं, जिससे प्रति सेल में कम से कम यूजर होंगे, और प्रति सेल में अधिक चैनलों का पुन: उपयोग (reuse) हो सकता है।
- सेक्टरीकरण: सेक्टरीकरण में प्रत्येक सेल को 3, 4, 6, 9, 12, 18, 24, 36, 48, 60, 72, 84, 96, 108, 120, 144, 168, 192, 216 or 240 degrees (depending on the number of sectors) में divide (divide) किया जाता है। प्रत्येक sector में different frequency bands (frequency bands) assign (assign) किए जाते हैं।
- माइक्रोसेल: माइक्रोसेल small cells (small cells) होते हैं, जो high traffic areas (high traffic areas) में use (use) किए जाते हैं। माइक्रोसेल low power transmitters (low power transmitters) use (use) करते हैं, जिससे interference (interference) reduce (reduce) होता है।